शनिवार को उत्तर प्रदेश के आगरा के गढ़ीरामी गांव में राणा सांगा की जयंती के अवसर पर जिस तरह से क्षत्रिय करणी सेना ने 'रक्त स्वाभिमान सम्मेलन' का आयोजन किया वह शक्ति प्रदर्शन तो था ही, उससे बढ़कर वह संविधान की धज्जियां उड़ाने वाला कार्यक्रम साबित हुआ। क्षत्रिय समुदाय के देश भर से लोग यहां एकत्र हुए थे। इसमें एक ओर तो सीधे-सीधे हथियारों का जंगी प्रदर्शन किया गया, वहीं दूसरी तरफ़ मारने-काटने की सरेआम बातें हुईं।
समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन के खिलाफ वक्ताओं ने गुस्सा तो उतारा ही, उन्हें मार डालने की खुली धमकियां दी गयीं जबकि वहां पुलिस की बड़े पैमाने पर तैनाती थी। किसी अनहोनी की आशंका में प्रशासन ने भारी सुरक्षा व्यवस्था की थी। याद हो कि पिछले दिनों सुमन ने संसद मे एक बयान में राणा सांगा को यह कहकर 'गद्दार' करार दिया था कि बाबर को भारत में वे ही बुलाकर लाये थे। इसे लेकर क्षत्रियों में गहरी नाराज़गी है। करणी सेना के कुछ लोगों ने तो सुमन की जुबान काट लेने वाले के लिये पुरस्कार तक घोषित किया था। यदि उनके खिलाफ कार्रवाई की गयी होती तो यह नौबत न आती।
सम्मेलन में देश भर से पहुंचे क्षत्रिय समुदाय के लोग तलवारें लहराते दिखे और मंच पर से उन्होंने बहुत आक्रामक भाषण दिये। इन भाषणों में आए लोगों ने रामजी लाल सुमन के खिलाफ नाराजगी जताई। एक व्यक्ति ने मंच से खुले आम कहा: 'जो राणा सांगा के खिलाफ बात करेगा, उसे 'अपने हिसाब से दंड' दिया जाएगा।' संयुक्त करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज शेखावत ने धमकी दी कि रामजी लाल सुमन की उनके घर में घुसकर हड्डी तोड़ी जायेगी। उन्होंने साफ कहा कि, 'कभी तो उनकी सुरक्षा में चूक होगी, तब उनकी कुटाई होगी। संविधान का डर नहीं, कुटाई से डराया जा सकता है।' चम्बल की बैंडिट क्वीन फूलन देवी की हत्या में दोषी पाये गये शेर सिंह राणा भी कार्यक्रम में आए थे। उन्होंने मांग की कि सुमन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) की धाराएं लगाई जायें। उन्होंने सांसद की सदस्यता रद्द कर उन्हें जेल भेजने की भी मांग की। पूर्व राजपूत करणी सेना अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी, जिनकी पिछले दिनों उनके घर में घुसकर हत्या कर दी गयी थी, की पत्नी शीला भी मंच पर थीं। उन्होंने कहा- 'हमें गर्व है कि हम राणा सांगा के वंशज हैं। कोई गद्दार हमारे भगवान पर सवाल उठाता है, तो उसे देश में रहने का अधिकार नहीं है।' करणी सेना के क्षेत्रीय अध्यक्ष ओकेंद्र राणा ने तो और एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि अब माफी से भी काम नहीं चलने वाला। करणी सेना के कार्यकर्ता कुुछ भी कर सकते हैं।
वैसे भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक धर्मपाल सिंह चौहान ने कार्यक्रम में पहुंचकर आयोजकों से ज्ञापन लिया और आश्वासन दिया कि करणी सेना की मांगों को वे सरकार तक पहुंचायेंगे। कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात करणी सेना के लोगों हाईवे को अवरूद्ध कर दिया था। वे सुमन के निवास की ओर जाना चाहते थे। उनके इस प्रयास को पुलिस ने विफल कर दिया। कई जगह करणी सेना के लोगों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की के नज़ारे देखने को मिले।
हजारों की संख्या में हथियारों से लैस राजपूतों के इस सम्मेलन ने बता दिया कि देश की कानून-व्यवस्था किस खतरनाक स्थिति में पहुंच गयी है और सत्ता से नज़दीकियां किसी भी एक समूह को किस हद तक उच्छृंखल बना देती है। सभा स्थल को देखने से साफ था कि आयोजकों एवं उसमें शामिल लोगों के लिये न तो कानून के प्रति कोई सम्मान रह गया है, न ही प्रशासन का डर। यह (दु)साहस तभी सम्भव है जब किसी को सत्ता की शह और संरक्षण दोनों ही हो। करणी सेना का इतिहास देखें तो वह अक्सर इसी तरह से कानून को ललकारती या उसे हाथ में लेती है। याद हो कि वर्ष 2017 में 'पद्मावत' नामक फिल्म आई थी, तो राजपूतों के अपमान के नाम पर करणी सेना ने देश भर में सिनेमागृहों के बाहर और भीतर तोड़-फोड़ व आगजनी की थी। उसके निर्देशक एवं कलाकारों को तक धमकियां दी गयी थीं। करणी सेना ने आरोप लगाया था कि राजपूतों के सम्मान को कम करने के लिये यह फिल्म बनाई गई है। निर्देशक संजय लीला भंसाली को करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने मारा भी था।
करणी सेना का आगरा सम्मेलन बतलाता है कि किस कदर देश को लगातार हिंसक और एक-दूसरे के प्रति नफरत के माहौल में ढाल दिया गया है। रामनवमी से लेकर र हनुमान जयंती पर निकलने वाले जुलूस यदि एक ओर मस्जिदों-मजारों के सामने हुड़दंग कर साम्प्रदायिक आधार पर बंटवारा कर रहे हैं, तो करणी सेना जैसे संगठनों के आयोजन जातीय संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं। जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं, उनके तथा केन्द्र की सरकार के संयुक्त प्रश्रय से ऐसे संगठनों के हौसले बुलन्द हैं। करणी सेना को भाजपा का समर्थक माना जाता है। भाजपा भी ऐसे तत्वों को संतुष्ट कर अपना राजनीतिक मकसद पूरा करती है। उत्तर प्रदेश की सरकार तो धु्रवीकरण के इस खेल में माहिर है ही, सो वह इस सम्मेलन में दिये गये मार-काट के भाषणों को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करने की बजाय मौन धारण किये हुए इसलिये बैठी है क्योंकि सुमन सबसे बड़े विरोधी दल के सांसद हैं। उनके खिलाफ बनते माहौल से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का खुश होना स्वाभाविक है। ऐसी कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिये कि प्रशासन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा।